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अगरिया जोड़ो अभियान 2025 ज़िला अनूपपुर के ग्राम पयारी मे संपन्न हुआ ll

ज़िला अनूपपुर ब्लॉक पुष्पराजगढ़ के ग्राम पयारी मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे दिनांक 15/06/2025 को ज़िला अनूपपुर ग्राम - पयारी ब्लॉक पुष्पराजगढ़ मे ज़िला स्तरीय अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया उपस्थित हुए ll

16वी सदी में स्वदेशी विधि से उम्दा लोहा बनाते थे अगरिया आदिवासी

16 वी सदी में स्वदेशी  विधि से उम्दा लोहा बनाते थे अगरिया आदिवासी 

उपलब्धि -डॉ दीपक द्विवेदी  शोध पत्र इंग्लैंड की शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित ,कलांतर यह कला लुप्त हो  गयी ,धौकनी का इस्तेमाल करते थे 


कुछ इस तरह से थी हमारी अपनी स्वदेसी तकनीक -अगरिया आदिवासी जिस लौह अयस्क का उपयोग करते थे वह उच्च गुणवत्ता का था।   फोर्जिंग तकनीक थी जो लोहे के ऊपर एक परत बनाती थी जो लोहे को जंग रोधी बनाता था। लोहे को पीटने से भीतर सारे छिद्र बंद कर बाहरी तत्वों को अभिक्रिया कर जंग बनाने के कारक ख़तम हो जाते थे। लौह  अयस्क में कैल्सियम ,सिलिकॉन व फास्फोरस होता है ,जिसे जंग रोधी बनाने वर्तमान में ब्लास्ट फर्नेस ,फास्फोरस क्रोमियम व निकिल जैसे तत्व मिलाये जाते है। उस दौर में  पूरी तरह स्वदेसी तकनीक से कम तापमान व कम खर्च में वे घर में बना लोहा ज्यादा मजबूत ,जंग रोधक व सस्ता था ,वर्तमान में विदेशो में पेटेंट तकनीक उपयोग हो रही है। 

जिस विधि से आज लोहा बनाया जाता है ,स्वदेसी तकनीक से भारत के अगरिया आदिवासी सदियों पहले उम्दा लोहा बनाया करते थे। तब की परंपरागत विधि से धौकनी की मदद से मजबूत व जंग रोधी लोहा वे अपने घर में बनाते थे। कालांतर में यह कला लुप्त सी हो गयी है लोहा बनाने की कला 16 वी सदी में ही इजाद हो चूका था। उस दौर में लोग कुछ इस प्रकार के लौह अयस्क का प्रयोग करते थे ,जिससे बना लोहा आज के मुकाबले अधिक मजबूत और जंगरोधी था। 
अगरिया जनजाति लोहा बनाने के लिए कम तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस का उपयोग करते थे उनके फर्नेस  संरचना अलग थी। .

इसके पश्चात 18 वी सदी में जब ब्रिटिश कानून तो कानून बनाते हुए घर में लोहा निर्माण कर बेचना प्रतिबंधित कर दिया गया। यह अधिकार केवल ब्रिटिश शाशन को था , जो उनका लोहा ईरान ,ईराक ,डेमस्कस व जापान समेत विदेशो में भेजने लगे।  इस तरह से भारत की स्वदेसी तकनीक और वह प्राचीन कला हमारे देश से लगभग लुप्त हो चुकी है। वर्तमान स्थिति में कुछ पुराने बुजुर्ग और उनके परिवार है जो इस कला को सम्हाले हुए है। जिसमे कोरबा भी शामिल है। 


इस तरीके से डॉ दीपक जी ने अपने शोध में अगरिया जनजाति के लौह प्रगलन इतिहास को उजागर किये। 
ऊपर वर्णित अगरिया जनजाति के इतिहास से यह स्पष्ट है की अगरिया जनजाति आदि काल से लौह का प्रगलन करता रहा है जो आज की स्थिति में पूरे भारत में निवासरत है जो आदिकाल की प्रजाति है। आदिकाल से इस पृथ्वी अगरिया जनजाति का वजूद रहा है।  और आपको लेख के माध्यम से अवगत कराना चाहुगा की आज  भी अगरिया जनजाति लौह का प्रगलन करता है आज भी भट्ठी ,कोठी ,चेपुआ पर अगरिया कार्य करता है जिसका छाया चित्र आपके सामने साझा कर रहा हु।   
                             जशपुर छग के अगरिया लौह प्रगलन करते हुए अपने परिवार के साथ 




आज भी अगरिया जनजाति अपने संस्कृति को अपनाया हुआ है ,
जिसका प्रमाण अगरिया आदिवासियो के घर मौजूद है ,लेकिन विडंबना ये हुआ की अगरिया लोहा पर कार्य करने के कारन सामाजिक स्तर पर कई जगह उनको लोहार के नाम से पुकारा गया.जिसके कारण आज शासन प्रशासन के नजर में  अगरिया आदिवासी अस्तित्व कई राज्यों के  कई जिलोमे अगरिया नाम से नहीं मिलता बल्कि लोहारो के नाम से मिलता है जिससे आज अगरिया अस्तित्व खतरे में है ,

           अगरिया आदिवासी लौह प्रगलन करके लोहा निकालते हुए (वर्तमान समय में लोहा गलाते हुए )


अतः उनके दस्तावेज में सुधार आवश्यक है। 
क्योकि जैसे जैसे समय बदलता जा रहा है अगरिया अस्तित्व खतरे की ओर है। 
अगरिया अस्तित्व वर्तमान में भारत के कई राज्यों में मौजूद है जैसे मध्यप्रदेश ,छत्तिश्गढ़ ,झारखण्ड ,बिहार ,उप्र , ओडिसा ,असम ऐसे भारत के कई राज्यों में मौजूद है लेकिन मजे की बात ये है की कई राज्यों के कई जिलों के अगरिया दस्तावेज में पूर्व लिखित दस्तावेज लोहारएवं गोंडी लोहार  के अनुसार लोहार माना जा रहा है अतः शासन प्रशासन से अनुरोध है अगरिया जनजाति पर ध्यान   दिया जाय जिससे अगरिया जनजाति के अस्तित्व को बचाया जा सके। 

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