मध्यप्रदेश में अगरिया जनजाति के अस्तित्व के बारे में जानकारी: 1. परिचय: अगरिया जनजाति भारत के पारंपरिक आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। यह जनजाति ऐतिहासिक रूप से लोहा गलाने (Iron Smelting) की पारंपरिक कला के लिए जानी जाती है। 2. मध्यप्रदेश में उपस्थिति: अगरिया जनजाति मुख्य रूप से सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और डिंडोरी जिलों में पाई जाती है। यह जनजाति विशेषकर वनवासी क्षेत्रों में रहती है और पारंपरिक जीवनशैली अपनाए हुए है। 3. पारंपरिक पहचान: अगरिया लोग पारंपरिक रूप से लोहे को गलाकर औजार, खेती के उपकरण और हथियार बनाते थे। यह कार्य वे कोठी भट्ठी और धौकनी की मदद से करते थे। इनकी यह पारंपरिक तकनीक पूरी तरह स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल थी। 4. सामाजिक और आर्थिक स्थिति: आज अगरिया जनजाति आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई मानी जाती है। इनकी पारंपरिक धंधा (लोहा गलाना) अब लगभग विलुप्त हो चुका है, क्योंकि आधुनिक तकनीक और औद्योगीकरण ने इसे प्रतिस्थापित कर दिया। आजकल यह समुदाय खेती, मजदूरी, वनोपज संग्रहण जैसे कार्यों मे...
भाग -2 पढ़ने से पहले भाग -1 जरूर पढ़े लिंक भाग -१ का दिया है नीचे 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇 https://www.blogger.com/blog/post/edit/3054434937999672522/3014274752928315006 अगरिया आदिवाशियों की उत्पत्ति भाग -2 या अगरिया इतिहास , अगरिया कौन है सन 1921 में रफटन ने अगरियों को एक छोटे द्रविण आदिवासी समूह के रूप में वर्णित किया है जो गोंड प्रजाति से निकला हुआ है। तत्कालीन जिओलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के डिप्टी सुप्रिडेंट पी एन बोस ने 1887 में रायपुर जिले के लौह उद्योग के विवरण में लिखा है की अब इन जिले में अगरिया का नाम बड़ी मुश्किल से सुनने को मिलता है। वे कहते है की अब भट्ठिओ पर काम गोंड प्रजाति के ऐसे वर्ग द्वारा किया जाता है जो अपने आपको अगरिया या फिर परधान कहते है। वे ज्यादातर गोंडी भाषा ही बोलते है जो मैदानी इलाको में रहनेवाले अपने सहबन्धुओ को लगभग भूल ही चुके है लोहा गलाने का उद्योग गोंडी में बहुत पुराना हो गया है। उनकी परंपरा यह बतलाती है की वे लोग सबसे पहले काचिकोपा लाहूगढ़ या रेडहिल्स की आयरन वैली में बसे थे तथा यही एकमात्र ...