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मध्यप्रदेश मे अगरिया जनजाति का अस्तित्व

मध्यप्रदेश में अगरिया जनजाति के अस्तित्व के बारे में जानकारी: 1. परिचय: अगरिया जनजाति भारत के पारंपरिक आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। यह जनजाति ऐतिहासिक रूप से लोहा गलाने (Iron Smelting) की पारंपरिक कला के लिए जानी जाती है। 2. मध्यप्रदेश में उपस्थिति: अगरिया जनजाति मुख्य रूप से सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और डिंडोरी जिलों में पाई जाती है। यह जनजाति विशेषकर वनवासी क्षेत्रों में रहती है और पारंपरिक जीवनशैली अपनाए हुए है। 3. पारंपरिक पहचान: अगरिया लोग पारंपरिक रूप से लोहे को गलाकर औजार, खेती के उपकरण और हथियार बनाते थे। यह कार्य वे कोठी भट्ठी और धौकनी की मदद से करते थे। इनकी यह पारंपरिक तकनीक पूरी तरह स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल थी। 4. सामाजिक और आर्थिक स्थिति: आज अगरिया जनजाति आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई मानी जाती है। इनकी पारंपरिक धंधा (लोहा गलाना) अब लगभग विलुप्त हो चुका है, क्योंकि आधुनिक तकनीक और औद्योगीकरण ने इसे प्रतिस्थापित कर दिया। आजकल यह समुदाय खेती, मजदूरी, वनोपज संग्रहण जैसे कार्यों मे...

ए टी एम् जारी होते ही हो जाता है पांच लाख बीमा

ए टी एम् जारी होते ही हो  जाता है  पांच लाख  बीमा  बैंको में ए टी एम् धारको का होता है दुर्घटना बीमा  किसी भी राष्ट्रीकृत या गैर राष्ट्रीकृत बैंक के उपभोक्ता ने यदि बैंक से ए टी एम् जारी करवाया है तो ए टी एम् जारी होते ही उस उपभोक्ता का 25000 से लेकर 5 लाख तक का दुर्घटना बीमा बैंक ने करवाया है।  यह जानकारी 99 % उपभोक्ताओं को नहीं है इतना ही नहीं बीमा योजना बिना कोई राशि जमा किये विकलांगता से लेकर मौत होने तक के मुआवजे का प्रावधान है।  बैंको में ए टी एम् धारको के लिए बीमा योजना प्रारम्भ हुए कई साल हो गए लेकिन आज तक लोगो को इस बात की जानकारी तक नहीं है और ना ही बैंक अधिकारी कर्मचारी कभी अपने ग्राहकों को यह बताते है। बैंको के ए टी एम् उपयोग करने वाले उपभोक्ता की यदि किसी दुर्घटना में मौत होती है तो उसके परिजन नियमानुसार मुआवजा पाने के अधिकारी हो जाते है।  लेकिन यह बात ज्यादातर लोगो को पता नहीं होती और बैंक आश्रितों को मिलने वाली राशि दबा लेती है।  इस स्थिति में ए टी एम् धारक को मिलता है लाभ  * दुर्घटना में एक हाथ और पैर से विकलांग होने पर 5...