अगरिया जनजाति (Agariya Tribe) भारत की एक परंपरागत आदिवासी जनजाति है, जो मुख्य रूप से लोहा गलाने और लोहा बनाने की पारंपरिक तकनीक के लिए जानी जाती है। यह जनजाति मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में पाई जाती है। अगरिया समाज में कई गोत्र (वंश या कुल) पाए जाते हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख गोत्र है “सोनवानी गोत्र”। सोनवानी गोत्र का परिचय:- 1. अर्थ और मान्यता – “सोनवानी” शब्द दो भागों से मिलकर बना है – सोना (स्वर्ण) और वानी/वानीया (जल या पवित्रता से जुड़ा अर्थ)। इस गोत्र का संबंध पवित्रता और स्वर्णिम परंपरा से जोड़ा जाता है। 2. सामाजिक स्थान – सोनवानी गोत्र को अगरिया समाज में एक सम्मानजनक गोत्र माना जाता है। इस गोत्र के लोग पारंपरिक रूप से समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं। 3. विशेषता – सोनवानी गोत्र के लोग प्रायः शुद्धता और नियमों के पालन में माने जाते हैं। विवाह आदि अवसरों पर यह गोत्र विशिष्ट धार्मिक जिम्मेदारी निभाता है। अन्य गोत्रों की तरह, यह गोत्र भी अपने अंदर विवाह संबंध नहीं करता (गोत्रांतर्गत विवाह निषिद्ध है)। 4. अगरिया ...
जनजाति से आशय- भारतीय समाज में जनजाति से आशय वन्य जाती ,आदिवासी ,वनवासी, आदिमजाति गिरिजन आदि से है ,ये जनजाति ऐसे लोगो का समूह या समुदाय है जो आज भी जंगलो में निवास करते है। प्राकृतिक साधनो से ही अपना भोजन ग्रहण करते है। आधुनिक सभ्य समाज से दूर रहते है तथा शिक्षा ,कृषि ,उद्योग धंधे आदि से अपरिचित है। भारत की जनगणना 1991 के अनुसार -ये अपने सीमित साधनो से केवल जीवित रहना ही सीख सके है और आज भी विज्ञान की इस चका चौंध व सभ्यता की होड़ से अपरिचित है। ऐसे ही अपरिचित लोगो का उल्लेख भारतीय संविधान में अनुसूचित आदिम जनजाति या जनजाति (ट्राइबल ) के अंतर्गत किया जाता है। " भारतीय इतिहास में यदि बात करे तो आदिवासी समूह का वर्णन प्राचीन समय से मिलता है। डॉ श्री नाथ शर्मा जी जनजातीय अध्यन के अनुसार -"भारतीय समाज में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक आदि समूहों एवं वनवासियों का उल्लेख प्राप्त होता रहा है। वैदिक एवं उत्तर वैदिक काल तथा महाकाव्य काल में जनजातियों के नाम भी उल्लेखित है। जनजाति या आदिम जाती अथवा आदिवासी ट्राइब्स tribes शब्द का हिंदी रूपां...