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अगरिया जोड़ो अभियान 2025 ज़िला अनूपपुर के ग्राम पयारी मे संपन्न हुआ ll

ज़िला अनूपपुर ब्लॉक पुष्पराजगढ़ के ग्राम पयारी मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे दिनांक 15/06/2025 को ज़िला अनूपपुर ग्राम - पयारी ब्लॉक पुष्पराजगढ़ मे ज़िला स्तरीय अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया उपस्थित हुए ll

अगरिया विकिपीडिआ(अगरियो की चारित्रिक विशेषताएं )

अगरिया विकिपीडिआ  में आज हम अगरियों की चारित्रिक विशेषताओं के बारे में जानेगे।  अगरिया साधारण प्रजाति के प्रसन्नचित्त लोग होते है। वास्तव में अगरिया लोग बहुत मेहनती होते है। उनके जीवन की परिस्थितिया बहुत संघर्ष मय और पीड़ादायक होती है। एल्विन जी का कहना है की मैंने उनके साथ सुख  सुविधा के बिना,अक्सर कठिन समय बिताया है। जंगलो के बीच लम्बी दूरी तय करना ,पेड़ो को काटना तथा धुओं से भरा थका देने वाला कोयला बनाने का काम ,फिर कोयला से भरा टोकनियों को लादकर वापस घर लौटना -यह सब कोई कम मेहनत का काम नहीं है। वे गड्डे जहा लौह अयस्क खोदा जाता है प्रायः सहजता से पहुंच नहीं जा सकने वाला दुर्गम स्थानों पर होते है। जिसके लिए पहाड़ो की ऊंची चढ़ाइया चढ़नी पड़ती है। फिर उस स्थान पर छोटी सी तंग संकरी जगह में छोटी छोटी गैतियों से खुदाई करनी पड़ती है। बनाने का काम भी बहुत मेहनत का होता है ,अक्सर देखा एवं गौर किया गया है की लोहारो का सारा परिवार ,बहुत तड़के ,सुबह 3 -4 बजे उठ जाता है तथा उसके बाद 10 -11 बजे तक बिना खाना नास्ता के अनवरत काम करते रहते है। जब लोहारो का लम्बा काम समाप्त हो जाता है तो वे कभी...

अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति भाग -2 (Origin of Agaria tribal community Part-2)

भाग -2 पढ़ने से पहले भाग -1 जरूर पढ़े लिंक भाग -१ का दिया है नीचे 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇 https://www.blogger.com/blog/post/edit/3054434937999672522/3014274752928315006 अगरिया आदिवाशियों की उत्पत्ति भाग -2  या  अगरिया इतिहास , अगरिया कौन है  सन 1921 में रफटन ने अगरियों को एक छोटे द्रविण आदिवासी समूह के रूप में वर्णित किया है जो गोंड प्रजाति से निकला हुआ है। तत्कालीन जिओलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के डिप्टी सुप्रिडेंट पी एन बोस ने 1887 में रायपुर जिले के लौह उद्योग के विवरण में लिखा है की अब इन जिले में अगरिया का नाम बड़ी मुश्किल से सुनने को मिलता है।  वे कहते है की अब भट्ठिओ पर काम गोंड प्रजाति के ऐसे वर्ग द्वारा किया जाता है जो अपने आपको अगरिया या फिर परधान कहते है। वे ज्यादातर गोंडी भाषा ही बोलते है जो मैदानी इलाको में रहनेवाले अपने सहबन्धुओ को लगभग भूल ही चुके है लोहा गलाने का उद्योग गोंडी में बहुत पुराना हो गया है। उनकी परंपरा यह बतलाती है की वे लोग सबसे पहले काचिकोपा लाहूगढ़ या रेडहिल्स की आयरन वैली में बसे थे तथा यही एकमात्र ...