अगरिया जनजाति के देवता कौन है। लोहासुर सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक

दशरथ प्रसाद अगरिया निवास ज़िला - अनूपपुर  राज्य - मध्यप्रदेश 

अगरिया जनजाति के देवता कौन है। लोहासुर

अगरिया जनजाति के देवता कौन है। अगरिया जनजाति के  देवता लोहासुर  

लोहासुर देवता के बारे में (अगरिया जनजाति का प्रमुख देवता) 


लोहासुर  के सम्बन्ध में कई कहावत है  कई महान वैज्ञानिको ने अपने लेख में लिखे है जिनमे से  मै यहाँ दो। 

प्रमुख कहानियो को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हु।  तो आइये जानते है  लोहासुर कौन है -

 
भाग-१ 
दोस्तों अगरिया आदिवासी समुदाय में लोहासुर का प्रमुख स्थान है अगरिया आदिवासी समुदाय लोहासुर को अपना देवता मानते है।  यदि आप अपने क्षेत्र में अगरिया आदिवासी को जानते है तो पूछियेगा वो  लोहासुर को अपना प्रमुख आराध्य देवता मानते है मुर्गी सूअर इत्यादि की बलि भी देते है। 
 तो आइये जानते है लोहासुर कौन है और अगरिया आदिवासी के प्रमुख देवता के रूप में कैसे जाने जाते है। 
दोस्तों इसके सम्बन्ध में कहानी किवदंती है जो मै आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु -

लोहासुर भट्ठी का आराध्य देवता या संभवतः दानव है इसके सम्बन्ध में अति प्रचलित कहानियो में उसे भट्ठी में एक बालक के रूप में होना बतलाया गया है। सबसे पहले यह कहानी करिया कुंवर से जुडी है जो गौ मांस खाने तथा गाय की बलि देने के लिए बात विशेष रूप से जाना जाता है। करिया कुंवर को लोहरीपुर के विनाश के बाद एक मात्र बच निकली अगरिया महिला के सबसे बड़े लड़के या फिर ज्वाला मुखी का पुत्र माना  जाता है जिसने नागा बैगा की लड़की से विवाह किया था। ऐसा माना जाता है। 

एक बार करिया कुंवर अपनी भट्ठी धौक रहा था तभी उसने अपने धौकनी में से एक रोते हुए बच्चे की आवाज सुनी। उसने अपना पांचा भट्ठी में डाला और बच्चे को बाहर निकाला। बच्चा तपती आग की तरह गर्म था ,अतः करिया कुंवर बच्चे को पकड़ नहीं पाया। करिया कुंवर ने बच्चे से पूछा -तुम कुछ खाओगे या पियोगे ,बच्चे ने कहा -हां मै तुम्हारे सबसे बड़े लड़के को खाऊंगा। 

यह सुनकर करिया कुंवर कहता है नहीं ,मै तुम्हे उसे नहीं दूंगा -
यह सुनकर बच्चा आगबबूला हो गया।  वह खड़ा हो गया और बोला -मेरा नाम लोहासुर है।  मुझे खाने के लिए काली गाय लाकर दो नहीं तो मई तुम्हारे सारे बेटो को खा जाउगा। करिया कुंवर भाग कर जानवरो के बाड़े में गया और एक काली गाय लेकर आया।  फिर लोहासुर ने कहा -अब तुम मुझे रहने के लिए कोई जगह दो। करिया कुंवर गुस्से में था इसलिए बोले  वही तुम्हारी जगह है जहा से तुम आये हो `, जैसे ही करिया कुंवर ने ऐसा कहा ,लोहासुर वह से अंतरध्यान हो गया। 
करिया कुंवर ने काली गाय भट्ठी से बाँध दी और थोड़ी देर बीड़ी पीने तथा अपने साथियो के साथ गपसप मारने चला गया। जब लौटा तो उसने देखा की बिना सर की काली गाय भट्ठी से बंधी पड़ी है यह देखकर करिया कुंवर बहुत   भय भीत हो गया। उसने गाय को एक लकड़ी मारी जिससे खून बहने लगा। करिया कुंवर ने अपनी दाए हाथ की चौथी अंगुली से थोड़ा खून लगाया और अपने माथे पर खून का टीका लगाया तथा थोड़ा सा खून भट्ठी पर छिड़का। फिर उसने गाय को जमीन में दफना दिया। 

यह कहानी करंजिया क्षेत्र की दलदल से प्राप्त यह स्थापित करती है की लोहासुर के सम्मान में गाय की बलि चढ़ाई गयी थी। अब अगर वर्तमान में कहे तो बलि में बदलाव आया है कही कही सुवर ,मुर्गी इत्यादि की बलि चढ़ाई जाती है। 

भाग -२ 
आइये अब लोहासुर के सम्बन्ध में दूसरी प्रचलित कहानी पर बात करते है। 
जब लोहासुर का जन्म भट्ठी से हुआ था तो वह बच्चे की तरह रोया था पर कोई समझ नहीं पाया था की आखिर बात क्या है -बारहो अगरिया भाई कोयले का धुंवा पीकर बेहोश पड़े थे।  उस समय लोहासुर कांव कांव चिल्ला  रहा था पर कोई उसकी बात समझ नहीं पा रहा था। इस पर लोहासुर नाराज होकर जहा कोदो का ढेर बिछा हुआ था वह वाहा जाकर खेलने लगा।  तभी एक बूढ़ी गोडिन सिर पर छांछ का मटका लिए वहा  गुजरी। उसने  देखा की लोहासुर कोदो के ढेर पर खेल रहा है  वह अगरिया भाइयो के पास गयी तथा नशे में पड़े सभी भाइयो को थोड़ा थोड़ा मठा पिलाया और जब वे होश में आये तो उसने सब भाइयो से कहा -उठो लोहासुर  का जन्म हो गया है। आओ ,जल्दी से एक काली गाय लाओ और भट्ठी से बांध दो तथा अपनी भट्ठिओ को भूसे से भर दो और जोर जोर से चिल्लाओ :आओ लोहासुर भवानी। मै आपको भोजन देता हु। मै आपको रहने का जगह देता हु। आप कृपया यहाँ पधारे और यहाँ रहे। यदि तुम सब लोग मिलकर ऐसा कहोगे तो ही लोहासुर यहाँ आएगा ,ऐसी  बूढ़ी औरत बोली। 

सभी अगरिया भाइयो ने ऐसा ही किया तब लोहासुर आया और भट्ठी के कोदो  बैठ गया। अगरिया भाइयो ने काली गाय की बलि की चढ़ाई ,और उसके खून को अपने माथे पर लगाए और भट्ठी पर भी चढ़ाया। 
इस कहानी में विशेष रूप से जो कोदो के भूसे का उल्लेख किया गया है  महत्त्व आपको आगे स्पष्ट किया गया है  जो मंडला जिले के करंजिया क्षेत्र के दादर गांव से प्राप्त हुई थी
बारह अगरिया भाइयो ने भट्ठी में लौह युक्त पत्थर भर दिए तथा आठ  दिन नौ रात तक उस भट्ठी में आग जलाये रखी। परन्तु लोहा बनकर बाहर नहीं आया। बनने वाला पिघला लोहा गुप्त रूप से बहकर कोदो के भूसे के ढेर के साथ खेलने चला जाता था। तभी वहा एक बूढी औरत आयी और इन अगरिया भाइयो से बोली -मेरे बच्चो  क्या कर रहे हो -लोहा तो बनकर निकल रहा है और कोदो के भूसे के ढेर के साथ खेल रहा है। यह बात सुनकर सभी भाइयो ने उस बूढी औरत का मजाक उड़ाया।  पर बार बार वह यही दोहराती रही -नहीं नहीं वह वह कोदो के ढेर पर टहल रहा है। अंततः एक भाई ने वह जाकर देखा तो पाया की लोहासुर वाकई भूसे के ढेर पर खेल रहा है। उस भाई ने लोहासुर को उठाया परन्तु उसका हाथ टूट गया। उसके बात सरे भाई वह गये और किसी तरह लोहासुर को भट्ठी में रखा ,पर थोड़ी  लोहासुर फिर उसमे से निकल कर भूसे के ढेर के साथ खेलने लगा। 
फिर लोहासुर सपने में आया  और बोला -तुम लोग अपनी भट्ठी में कोदो रखने की जगह बनाओ ताकि मै वहा आराम से बैठ सकू। उन लोगो ने वैसा ही किया तब कही जाकर लोहासुर वहा बैठा। लोहासुर कुंवारी कोदो के भूसे से शादी करना चाहता था और उसके प्रति प्रेम के कारन ही वह कोदो के भूसे के ढेर पर खेलने जाया करता था।  इसलिए आज तक यदि भट्ठी में ठीक से कोदो के भूसे को नहीं जमाया जाय तो लोहा ठीक से नहीं निकलता है। 
यहाँ इस कहानी को आधार मानकर लोहा गलाने की तकनीक को रोचक विवरण दिया  गया है  लोहा बनाने के पूर्व भट्ठी में उपयुक्त आधार होना चाहिए ,जिस पर लौह  युक्त पत्थर अच्छी तरह रखा  सके।  चुकी कोदो का भूसा बहुत चिकना होता है ,अतः इस प्रकार के कार्य करने के लिए उपयुक्त होता है। 





 




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए ...

मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी

  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी  1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या-  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।   2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है।  3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे - https://youtu.be/D5RSMaLql1M   )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल  आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है।  4-...

अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति (Origin of Agariya tribal community: -)

  अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति :- कोरबा के अगरिया 👇👇👇👇👇  अब हम एक महत्वपूर्ण और कठिन समस्या की और ध्यान देते है की वास्तव में ये अगरिया कौन है क्या  ही आदिवासी है ,क्या वैसे आदिवासी है जैसे होने चाहिए ,अपने आप में जो पहले ही अस्त्तिव में आ गए थे।  संभवतः लोहे की खोज या जानकारी के समय या सेन्ट्रल प्राविन्स में लोहे  की जानकारी प्राप्त होने के समय ,अथवा क्या वे साधारण तौर पर अनेक विभिन्न आदिवासी समूहों के सदस्यों का जमावड़ा है ,जिन्होंने लोहा गलाने का काम चुन लिया है. क्या डिंडोरी मंडला अनूपपुर शहडोल सीधी  सिंगरौली के अगरिया वही अगरिया है जो गोंडो की एक शाखा है जिन्होंने लोहे का काम करना शुरू कर दिया है।  और इसलिए धीरे धीरे वे एक विशेष समुदाय के रूप में अलग हो गए है। बिलासपुर के चोख अगरिया कोरबा उपजाति से बहुत मिलते जुलते है ,क्या वे कोरबा छत्तीसगढ़ जनजाति का ही एक अलग वर्ग है जिन्होंने लोहा गलाने का काम सुरु कर  दिया है।  हम भारत के कुछ अन्य जगह के समस्याओं को रख कर बात कर सकते है। रिसले ने बताया है की बिहार तथा पशिचम बंगाल के  लो...