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मध्यप्रदेश मे अगरिया जनजाति का अस्तित्व

मध्यप्रदेश में अगरिया जनजाति के अस्तित्व के बारे में जानकारी: 1. परिचय: अगरिया जनजाति भारत के पारंपरिक आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। यह जनजाति ऐतिहासिक रूप से लोहा गलाने (Iron Smelting) की पारंपरिक कला के लिए जानी जाती है। 2. मध्यप्रदेश में उपस्थिति: अगरिया जनजाति मुख्य रूप से सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और डिंडोरी जिलों में पाई जाती है। यह जनजाति विशेषकर वनवासी क्षेत्रों में रहती है और पारंपरिक जीवनशैली अपनाए हुए है। 3. पारंपरिक पहचान: अगरिया लोग पारंपरिक रूप से लोहे को गलाकर औजार, खेती के उपकरण और हथियार बनाते थे। यह कार्य वे कोठी भट्ठी और धौकनी की मदद से करते थे। इनकी यह पारंपरिक तकनीक पूरी तरह स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल थी। 4. सामाजिक और आर्थिक स्थिति: आज अगरिया जनजाति आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई मानी जाती है। इनकी पारंपरिक धंधा (लोहा गलाना) अब लगभग विलुप्त हो चुका है, क्योंकि आधुनिक तकनीक और औद्योगीकरण ने इसे प्रतिस्थापित कर दिया। आजकल यह समुदाय खेती, मजदूरी, वनोपज संग्रहण जैसे कार्यों मे...

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  असुर  भाग -१   समुद्र मंथन के प्रारम्भ से देवताओ व दानवो के मध्य लम्बे समय समय तक चले आ रहे घमासान युद्ध को महाभारत में बहुत सुन्दर तरीके से चित्रित किया गया है इस महाकाव्य में बहुत सुन्दर तरीके से बताया  गया है की किस प्रकार सर्प को रज्जु बनाकर तब तक समुद्र मंथन किया गया जब तक उसमे से मंथन के कारन अनेक शुभ सुन्दर उपयोगी वस्तु न निकल आये जिन्हे ललचाई दृष्टि से देवता लोग हड़प जाना चाहते थे। इस प्रक्रिया  और दानव एक दुसरे के सामने थे। चंद्र और अमृत घट  पाने के लिए देवताओ और दानवो के मध्य विकराल संग्राम हुआ। तभी भगवान् विष्णु ने मायावी रूप धार कर दानवो को भ्रमित कर दिया और दानव हताशा में देखते रहे की समुद्र से बहुमूल्य  निकलकर उनके पास से जा रही है। ऐसी बीच दानवो के मध्य असुर राहू ने अमृत घट की कुछ बूंदो का स्वाद पान कर लिया है और इसके पहले की वह उन बूंदो को गटक पाता ,नारायण ने उसकी गर्दन धड़  दी।   राहु का सर एक तेज ध्वनि के साथ आकाश मे उड़ गया और भीषण गर्जना के साथ उसका धड ज़मीन पर गिरा जिससे पृथ्वी के सारे जंगल और पहाड़ काँप उठे l परन्...