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अगरिया जोड़ो अभियान 2025 ज़िला अनूपपुर के ग्राम पयारी मे संपन्न हुआ ll

ज़िला अनूपपुर ब्लॉक पुष्पराजगढ़ के ग्राम पयारी मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे दिनांक 15/06/2025 को ज़िला अनूपपुर ग्राम - पयारी ब्लॉक पुष्पराजगढ़ मे ज़िला स्तरीय अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया उपस्थित हुए ll

अगरिया जनजाति में लोहा का महत्त्व (विवाह के अवसर पर, मृत्यु के अवसर पर)

१- अगरिया जनजाति में विवाह के अवसर पर लोहा का महत्त्व 

अगरिया जनजाति शादी विवाह के अवसर पर कुछ विषेस प्रकार के नियम लोहे को लेकर अपनाते है। आइये उसी को जानने का प्रयास करते है।   किवदंतियो के सम्बन्ध में कई वैज्ञानिक अपने लेख में लिख चुके है जिनमे से कुछ जानकारी आप तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। . 

तो  जानते है अगरिया जनजाति में विवाह पर लोहे का क्या  महत्त्व है। 

अगरिया जनजाति और उनके पडोसी विवाह संस्कार में दूल्हा दुल्हिन को सुरक्षित रखने  के लिए लोहा ,विशेसकर कुवारी लोहा का उपयोग करते है। पूरे विवाह संस्कार के दौरान दूल्हे को अपने  साथ सरौता रखना होता है। कभी कभी वह अपने गले में लोहे की हसुली तथा हाथो में लोहे का कलावा पहनता है। शादी के मंडप में यदि मिल सके तो लोहे के बड़े बड़े दीपक रखना बड़ा लोकप्रिय है। शादी में पहनाई जाने वाली चूल मुंदरी पीतल ,बेलमेटल तथा कुंवारे लोहे  को मिलाकर बनाई जाती है जो भूत प्रेत भगाने में असरदार होती है ऐसा अगरिया जनजाति टोटका मानते है। अपने पति के गृह में प्रथम प्रवेश  पर दुल्हन को लोहे का टुकड़ा लांघकर अंदर जाना पड़ता है।  पश्चिमी भारत में शादी के अवसर पर लोहे का उपयोग का विवरण एबट द्वारा दिया गया है। 


२ -  मृत्यु के अवसर पर लोहा का महत्त्व 

अगरिया जनजाति में ऐसा माना जाता है की मृत्यु के बाद शोकवाले दिनों में बुरी आत्माये बड़ी क्रियाशील रहती है तथा उनसे रक्षा करने के लिए लोहे का उपयोग आवश्यक किया जाना चाहिए। बर्मा में नवजात बच्चे की माँ के पास लोहे का एक छोटा सा टुकड़ा यह कहते हुए रखा जाता है की अब तुम फिर से अपनी माँ के गर्भ में तब तक नहीं जाना जब तक लोहा नरम ना हो जाय।  

रसेल के अनुसार  ,बायसन के सींगो का मुकुट पहनने वाले मारिया छोटी माता की  बिमारी से ,गर्भावस्था  में या प्रसव के समय मृत औरत जमीन में दफनाने  से पहले  स्थानीय ओझा को बुलवाकर उस मृत औरत के घुटने तथा कोहनी में कील ठुकवाते है उनका मानना है की यह प्रथा पूरे भारत में है और बड़ी सामान्य है।  परन्तु वर्तमान में यह प्रथा मप्र एवं छत्तिश्गढ़  उप्र ,बिहार ,झारखंड असम में देखने को नहीं मिलता। 

एल्विन जी के लेख में  यह भी मिलता है की लोहा मृतक के साथ दफनाया जाता है। एक बूढ़े आयरिश व्यक्ति को किरतान -इन -लिंडसे में दफनाया  गया था। ऐसा कहा जाता है की उसने मरने से पहले अपनी पत्नी को कब्र में दफनाते समय एक चाभी रखने को कहा था ताकि वह  उस चाभी से स्वर्ग का दरवाजा खोल सके। 

स्कॉटलैंड के  ग्रामीण इलाको में मृत्यु के तुरंत बाद खाने की वस्तुएं मक्खन ,चीज ,मांस तथा हिस्की की बोतल पर कील ठोंकी जाती है ताकि मृत्यु इन चीजों में प्रवेश ना कर सके अन्यथा भोजन ख़राब हो जाता है तथा व्हिस्की सफेद दूध में परिवर्तित हो जाती है। 

उपरोक्त वर्णित जानकारी डॉ एस सी राय एवं रसेल जी के लेख में मिलता है विस्तृत जानकारी के अवश्य देखे। 


अगरिया जनजाति में लोहे का महत्त्व 

शादी में  लोहे का महत्त्व 

मृत्यु पर लोहे का महत्त्व 

टिप्पणियाँ

  1. अगरिया जनजाति के लोग उड़द का दाल को पवित्र क्यों मानते हैं, कोई तो वजह होगा तभी तो अगरिया जनजाति के लोग उड़द का दाल को पवित्र मानते हैं,

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  2. अगरिया जनजाति के लोग उड़द का दाल को पवित्र क्यों मानते हैं कोई तो वजह होगा तभी तो अगरिया जनजाति के लोग उड़द का दाल को पवित्र मानते हैं, बिना वजह का किसी चीज को पवित्र नहीं माना जाता है, अगर आप लोगों को इसके बारे में किसी भी प्रकार का जानकारी हो तो बताएं

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