आदिवासी suheduled tribes ADIWASI KE BARE ME TRIBE TRIBEWIKIPIDIA सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अगरिया जोड़ो अभियान 2025 ज़िला अनूपपुर के ग्राम पयारी मे संपन्न हुआ ll

ज़िला अनूपपुर ब्लॉक पुष्पराजगढ़ के ग्राम पयारी मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे दिनांक 15/06/2025 को ज़िला अनूपपुर ग्राम - पयारी ब्लॉक पुष्पराजगढ़ मे ज़िला स्तरीय अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया उपस्थित हुए ll

आदिवासी suheduled tribes ADIWASI KE BARE ME TRIBE TRIBEWIKIPIDIA

 आदिवासी 

आदिवासी के बारे में आइये जानने का प्रयास करते है वास्तव में आदिवासी का मतलब क्या है। 

"आदि " "वासी "नाम में ही सार छुपा है 

आदिकाल के निवासी। 

किसी ने यह शब्द बड़े ही सोच विचार के इजात किया ,

इस शब्द से ही सब कुछ व्यक्त हो जाता है जैसे - आदिकाल का इतिहास ,जल ,जंगल ,जमीन  का सार ,




कला -संस्कृति का रंग 

सार्थकता के लिए निवासी क्षेत्र का निर्माण। 

हमारे जीवन का राज यही जल ,जंगल ,जमीन  है। जिसकी सार्थकता हम दिन प्रतिदिन खोते जा रहे है। जिसकी कदर करना हम  छोड़ते जा रहे है। 




शान -शोहरत की दुनिया में  बढ़ते चले जा रहे है , जाने अनजाने में प्रकृति को नुक्सान पहुंचाते चले जा रहे है। 

अब जरा सोचिये क्या कर रहे है  

आप  मै  और हम 

आदिवासी आज सुदूर जंगलो पहाड़ो पर निवास करते है जो पूरी तरह  पर्यावरण अर्थात पृकृति पर निर्भर होते है  आदिवासी पूर्ण रूप  पृकृति पूजक होते है। आदिवासियों की धरोहर उनकी संस्कृति ,पहनावा ,भेसभूसा ,रहन सहन , कई तरह के  टोटके है जो उनको जीवन शक्ति देता है एवं उन्हें भौतिक सभ्यता  से बचाकर  रखता है , और जो उनकों औरो से अलग रखता है। 

यद्यपि दुनिया के अधिकांश देशो में आदिवासी लोग  रहते है और वे लोग ,खुद को परंपरा वादी कहते है। 


मै थोड़ा सा ध्यान आकर्षित करना चाहुगा।  

 आदिवासियों को ट्राइब्स  या suheduled tribes के नाम से सम्बोधित तो किया जाता  है लेकिन उनको इंडिजिनस पीपल या आदिवासी शब्द से सम्बोधित करने में परेशानी होती है क्योकि जब एक आदिवासी को ट्राइब कहा जाता है तो आदिवासी की छवि एक घुमन्तु आदमी की बनती है जिसका कोई ठौर ठिकाना नहीं होता है।  

लेकिन जब उसी व्यक्ति को आदिवासी कहा जाता है तो उसकी इमेज एक डीएम बदल सी जाती है। आदिवासी कहने से उसके वास स्थान का सवाल उभर कर सामने जाता है। 

"आदिवासी "शब्द से  प्राचीनता  का बोध तो होता ही है लेकिन उसके साथ ही जिस  जमीन पर जो आदिवासी निवास करते है  जमीन पर उनके स्वामित्व और अधिकार की भी घोषणा हो जाती   है।  आदिवासी शब्द से यह भी घोषणा हो जाती है की वे भूमि पुत्र है  वह जमीन जिसमे वे वास करते है वही उनका अपना दुनिया है। ,वही उनकी विरासत एवं परंपरा और संस्कृति है। 

अगर माने तो आज सैकड़ो देशो हजार भाषाओ और परम्पराओ में बिखरे हुए दुनिया भर के तमाम आदिवासियों की जीवन शैली लगभग एक जैसी ही है और ना केवल उनकी विचार धारा बल्कि उनकी समस्याएं भी एक है। 

आंकड़ों के हिसाब से यदि यदि बात करे तो लगभग 48 करोड़ आदिवासियों की आबादी दुनिया भर के 90 देशो में फैली हुई है यह दुनिया की जनसँख्या का लगभग 6 % है। लेकिन दुखद बात ये है की इस आबादी के 15 % लोग दुनिया के सबसे गरीब तमके के लोग है। भारत में आदिवासियो की आबादी करीब ११ करोड़ है जिसमे से 50%लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है , वे भारत के लगभग 13 % भूमि -क्षेत्र पर वास करते है। 

इन सारे आदिवासी मुद्दों को लेकर सयुक्त राष्ट्र संघ ने सबसे पहले अगस्त 1982 में और फिर दूसरी बार दिसम्बर 1994 में एक आमसभा जेनेवा में बुलाई थी। इसी जेनेवा कन्वेंसन में अगस्त 9 को "विश्व इंडिजिनस डे"के रूप में घोषित  किया गया था । 

आदिवासी इस विश्व आदिवासी दिवस को इतिहास के पन्नो में एक माइल स्टोन के रूप में देखते है क्योकि इस घोषणा के द्वारा दुनिया ने पहली बार आदिवासी परम्पराओ को और उनमे निहित ज्ञान की धाराओं को एक नॉलेज किया। यह आदिवासियो के लिए एक गर्व की बात है। लेकिन एक प्रासंगिक सवाल यह है की क्या आदिवासियों की परंपरागत -ज्ञान इतना सुदृढ़ और मजबूत है की यह दुनिया को कोई वैकल्पिक दिशा दे सकता है। 


तो दोस्तों आपको पोस्ट कैसा लगा अपना विचार कमेंट में अवश्य दे। और यदि अच्छा लगे तो सभी तक शेयर करे। 

जय हिन्द 

वन्दे मातरम 

 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए ...

मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी

  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी  1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या-  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।   2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है।  3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे - https://youtu.be/D5RSMaLql1M   )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल  आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है।  4-...

अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति (Origin of Agariya tribal community: -)

  अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति :- कोरबा के अगरिया 👇👇👇👇👇  अब हम एक महत्वपूर्ण और कठिन समस्या की और ध्यान देते है की वास्तव में ये अगरिया कौन है क्या  ही आदिवासी है ,क्या वैसे आदिवासी है जैसे होने चाहिए ,अपने आप में जो पहले ही अस्त्तिव में आ गए थे।  संभवतः लोहे की खोज या जानकारी के समय या सेन्ट्रल प्राविन्स में लोहे  की जानकारी प्राप्त होने के समय ,अथवा क्या वे साधारण तौर पर अनेक विभिन्न आदिवासी समूहों के सदस्यों का जमावड़ा है ,जिन्होंने लोहा गलाने का काम चुन लिया है. क्या डिंडोरी मंडला अनूपपुर शहडोल सीधी  सिंगरौली के अगरिया वही अगरिया है जो गोंडो की एक शाखा है जिन्होंने लोहे का काम करना शुरू कर दिया है।  और इसलिए धीरे धीरे वे एक विशेष समुदाय के रूप में अलग हो गए है। बिलासपुर के चोख अगरिया कोरबा उपजाति से बहुत मिलते जुलते है ,क्या वे कोरबा छत्तीसगढ़ जनजाति का ही एक अलग वर्ग है जिन्होंने लोहा गलाने का काम सुरु कर  दिया है।  हम भारत के कुछ अन्य जगह के समस्याओं को रख कर बात कर सकते है। रिसले ने बताया है की बिहार तथा पशिचम बंगाल के  लो...