अगरिया समाज संगठन की उपलब्धि सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अगरिया जोड़ो अभियान 2025 ज़िला अनूपपुर के ग्राम पयारी मे संपन्न हुआ ll

ज़िला अनूपपुर ब्लॉक पुष्पराजगढ़ के ग्राम पयारी मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे दिनांक 15/06/2025 को ज़िला अनूपपुर ग्राम - पयारी ब्लॉक पुष्पराजगढ़ मे ज़िला स्तरीय अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया उपस्थित हुए ll

अगरिया समाज संगठन की उपलब्धि

अगरिया जनजाति की उपलब्धि


अगरिया समाज संगठन भारत आज सम्पूर्ण भारत के अगरिया आदिवासियों को एक मंच पर लाने का मुहीम चला रहा हैं ll जहा संगठन से लगभग भारत के 7 राज्यों के अगरिया असुर समुदाय जुड़कर अगरिया समाज के विकास मे सतत लगे हैं ll वही एक ओर संगठन से जुडा छत्तीशगढ़ का एक जिला बलरामपुर से एक बहुत बड़ी खुसखबरी प्राप्त हुई हैं ll इस कार्य मे संगठन के एक महत्पूर्ण राष्ट्रीय स्तर के कार्यकर्त्ता श्री रघुनाथ अगरिया जी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं ll
आपको बताना चाहेंगे की मप्र छ ग बल्कि ऐसे कई राज्य हैं जहा अगरिया आदिवासियों को उनकी पहचान आज भी प्राप्त नहीं हुआ हैं ll अपने पहचान और अस्तित्व की प्राप्ति की लड़ाई अगरिया समुदाय लड़ रहा हैं अपने पहचान की खोज मे हैं ll आपको बताना चाहुँगा की अगरिया का अस्तित्व आदिम काल से ही इस पृथ्वी पर रहा हैं ll इस महान आदिम प्रजाति ने सर्वप्रथम लौह धातु का प्रगलन किया और लौह धातु की पहचान स्थापित करते हुए पूरी दुनिया को लौह जैसे धातु से अवगत कराया जहा आज पूरी दुनिया मे लौह के बिना जीवन अधूरा हैं ll ऐसे प्रजाति की पहचान कई राज्यों के कई जिलों मे खतरे मे हैं ll अगरिया समुदाय जो लौह अयस्क से लौह का निर्माण करता रहा हैं बल्कि इनका मुख्य व्यवसाय भी लौह का प्रगलन करना एवं लौह धातु के औजार बनाना एवं लोहे के साथ आग पर काम करना रहा हैं ll
अगरिया जनजाति की पहचान की बात करें तो कई राज्यों के जिलों मे अगरिया को लोहार समझा जाने के कारण अगरिया समाज के बच्चों का जाती प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा था और बच्चे शिक्षा से वंचित हो जा रहे थे लगभग क्लास 10-12 के बाद वो अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे ll क्योंकि उनकी पहचान लोहार मे किया जा रहा था जिससे उनका जाती प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा था ll जिससे बच्चे अपनी पहचान से अलग होकर शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे थे ll क्योंकि अगरिया एक आदिमजनजाति की श्रेणी मे आता हैं ll और और लोहार अलग श्रेणी मे आता हैं ll जिससे बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते थेll अगरिया जनजाति के ऐसे कई बच्चों ने अपने आपको लोहार की श्रेणी मे नहीं रखा बल्कि शिक्षा से वंचित होना स्वीकार किया ll क्योंकि उनको अपने अस्तित्व से लगाव था अपने समाज से लगाव था ll आज उसी के तरताम्म मे एक खुशी की बात ये हुआ की छत्तीसगढ़ का एक जिला बलरामपुर से लगभग 30  बच्चों के जाती प्रमाण पत्र जारी हुए वो भी ऐसे बच्चों का जिनका कई सालो से प्रमाण पत्र नहीं बन रहा था ll आज उन बच्चों मे खुशी की लहर हैं और बच्चे अपने समाज के पहचान के साथ शिक्षा ग्रहण करने को उत्साहित हैं ll क्योंकि उनको आज उनकी पहचान प्राप्त हुई हैं ll
🖕🖕🖕रघुनाथ अगरिया बलरामपुर छ ग 🖕🖕



बलरामपुर से श्री रघुनाथ अगरिया जी ने संगठन के उद्देश्य एवं मार्गदर्शन पर शासन प्रशासन के सामने अगरिया अस्तित्व की पहचान सम्बंधित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए समस्त बच्चों के प्रमाण पत्र जारी होने मे संगठन की ओर से महत्वपूर्ण कार्य किये ll आज संगठन मे खुशी की लहर हैं ll ऐसा माना जाता हैं की  जिला बलरामपुर मे अगरिया समाज के लिए प्रथम बहुत बड़ी उपलब्धि है ll जहा बच्चे अब शिक्षा से वंचित नहीं होंगे और वहा के अगरिया आदिवासी बच्चे भी अब शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे ll
आपको बताना चाहेंगे वास्तव मे ऐसे कई परिवार और बच्चे हैं जो वास्तव मे अगरिया आदिवासी से सम्बन्ध रखते हैं लेकिन अभि भी जाती प्रमाण पत्र नहीं बने हैं एवं बच्चे आधी पढ़ाई कर छोड़ चुके हैं ll क्योंकि लोहार बनकर आगे की शिक्षा प्राप्त करना अगरिया समुदाय के बच्चों ने उचित नहीं समझा ll
और आपको बता दे कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो वास्तव मे अगरिया होते हुए भी सामाजिक व्यवस्था के आधार पर अपने आपको लोहार मे परिवर्तित किया जो आज चाहते हैं की उनके भी दस्तावेज मे सुधार हो सके और वो भी अपने वास्तविक पहचान के आधार पर जीवन जी सके और उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सके ll

राष्ट्रीय लौह प्रगलक अगरिया समाज महासंघ भारत 
         अगरिया समाज संगठन भारत 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए ...

मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी

  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी  1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या-  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।   2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है।  3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे - https://youtu.be/D5RSMaLql1M   )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल  आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है।  4-...

अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति (Origin of Agariya tribal community: -)

  अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति :- कोरबा के अगरिया 👇👇👇👇👇  अब हम एक महत्वपूर्ण और कठिन समस्या की और ध्यान देते है की वास्तव में ये अगरिया कौन है क्या  ही आदिवासी है ,क्या वैसे आदिवासी है जैसे होने चाहिए ,अपने आप में जो पहले ही अस्त्तिव में आ गए थे।  संभवतः लोहे की खोज या जानकारी के समय या सेन्ट्रल प्राविन्स में लोहे  की जानकारी प्राप्त होने के समय ,अथवा क्या वे साधारण तौर पर अनेक विभिन्न आदिवासी समूहों के सदस्यों का जमावड़ा है ,जिन्होंने लोहा गलाने का काम चुन लिया है. क्या डिंडोरी मंडला अनूपपुर शहडोल सीधी  सिंगरौली के अगरिया वही अगरिया है जो गोंडो की एक शाखा है जिन्होंने लोहे का काम करना शुरू कर दिया है।  और इसलिए धीरे धीरे वे एक विशेष समुदाय के रूप में अलग हो गए है। बिलासपुर के चोख अगरिया कोरबा उपजाति से बहुत मिलते जुलते है ,क्या वे कोरबा छत्तीसगढ़ जनजाति का ही एक अलग वर्ग है जिन्होंने लोहा गलाने का काम सुरु कर  दिया है।  हम भारत के कुछ अन्य जगह के समस्याओं को रख कर बात कर सकते है। रिसले ने बताया है की बिहार तथा पशिचम बंगाल के  लो...