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मध्यप्रदेश मे अगरिया जनजाति का अस्तित्व

मध्यप्रदेश में अगरिया जनजाति के अस्तित्व के बारे में जानकारी: 1. परिचय: अगरिया जनजाति भारत के पारंपरिक आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। यह जनजाति ऐतिहासिक रूप से लोहा गलाने (Iron Smelting) की पारंपरिक कला के लिए जानी जाती है। 2. मध्यप्रदेश में उपस्थिति: अगरिया जनजाति मुख्य रूप से सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और डिंडोरी जिलों में पाई जाती है। यह जनजाति विशेषकर वनवासी क्षेत्रों में रहती है और पारंपरिक जीवनशैली अपनाए हुए है। 3. पारंपरिक पहचान: अगरिया लोग पारंपरिक रूप से लोहे को गलाकर औजार, खेती के उपकरण और हथियार बनाते थे। यह कार्य वे कोठी भट्ठी और धौकनी की मदद से करते थे। इनकी यह पारंपरिक तकनीक पूरी तरह स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल थी। 4. सामाजिक और आर्थिक स्थिति: आज अगरिया जनजाति आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई मानी जाती है। इनकी पारंपरिक धंधा (लोहा गलाना) अब लगभग विलुप्त हो चुका है, क्योंकि आधुनिक तकनीक और औद्योगीकरण ने इसे प्रतिस्थापित कर दिया। आजकल यह समुदाय खेती, मजदूरी, वनोपज संग्रहण जैसे कार्यों मे...

agariya

 अगरिया से परिचय 



अगरिया शब्द से अभिप्राय आग पर काम करने वाले लोग से  है अगरिया ,अगर कहे तो लोहा का काम करते है अगरिया की मुख्य रूप से सर्वप्रथम वह आदिवासी है जो सबसे पहले इस दुनिया को लोहा से परिचय कराया जी हां ,आप ने सही सुना है अगर ऐसा सुना है तो ,क्योकि अगरिया समुदाय ने सबसे पहले लोहा बनाया और इस दुनिया को लोहा से परिचय कराया जिसके बिना कोई भी कार्य आज संभव नहीं है। अगरिया समुदाय पत्थर से लोहा बनाते थे ,जिसकी पुष्टि पूर्व में की जा चुकी कई महान डॉक्टर्स वैज्ञानिक्स इनके बारे में शोध कर चुके है ,आपको हम बताना चाहेंगे की लगभग १० किलो पत्थर से ६ किलो तक का लोहा का प्रगलन होता अगरिया समुदाय द्वारा बनाया गया लोहा ९९. ९ % शुद्ध होता लैब टेस्टिंग के द्वारा भी यह प्रमाणित किया जा चूका है। अगरिया को गोंडो का लोहार भी कहा जाता है अगरिया समुदाय की अगर बात करे तो मध्यप्रदेश ,छत्तिश्गढ़ ,उत्तर प्रदेश ,बिहार ,झारखण्ड ,पश्चिम बंगाल ,एवं कई अन्य राज्यों। में पाए जाते है अगरिया समुदाय का हिस्सा असुर भी है असुर अगरिया दोनों एक है मध्यप्रदेश के मंडला ,बालाघाट ,अनूपपुर शहडोल,उमरिया दमोह ,सागर ,सिवनी ,छिंदवाड़ा बल्कि और कई जिलों में पाए जाते है ऐसी प्रकार छत्तीशगढ़ में कोरबा ,कोरिया ,कबीरधाम ,बलरामपुर ,सूरजपुर ,राजनांद गांव ऐसे कई जिलों में पाए जाते है।  लेकिन अगरिया के आधे से अधिक परिवार को पहचानना लगभग मुश्किल सा हो गया है ,क्योकि अगरिया समुदाय अपने क्षेत्रं के अनुसार परिवर्तित है अगरिया समुदाय वास्तव में मध्यभारत में आदिवासी में आते है। कुछ अगरिया तो  अपने को लोहार बताते है  लोहार लिखते है  जिससे उनको अगरिया समुदाय में पहचानना मुश्किल है , अगरिया वास्तव में लोहे का कार्य करते है लोहे के औजार ,हथियार बनना ,इत्यादि का कार्य  करते है लेकिन कई अगरिया आज ये कार्य अपने क्षेत्र के अनुसार  नहीं कर रहे है जिससे उनकी पहचान विलुप्ति के कगार  पर है और   अगरिया  का   पहचान  नहीं हो पा रहा है ,जिससे कई अगरिया समुदाय का अगरिया का प्रमाण पात्र भी नहीं बन पा रहा है शाशन प्रसाशन उनको लोहार समझता है जिससे कई अगरिया समुदाय के बच्चे पढाई से वंचित हो रहे है , अगर अगरिया की पहचान वास्तव में की जाय तो उनके घरो में धौकनी , घन ,हथौड़ा संसि ,निहाई छेनी  इत्यादि सामग्री मिलेगी , पर अगर दूसरे पक्ष की बात करे तो वास्तव में अन्य समुदाय के पास  जो वास्तव में अन्य वर्ग की श्रेणी में आते है ये सभी उनके पास भी  मिलेंगे लेकिन जो वास्तव में अगरिया है उनके औजार का वजन और बनावट अलग ही होगा , एक और विशेष पहचान है अगरिया समाज का गोत्र प्राकृतिक होता है समाज में गोत्र के आधार पर ही सामाजिक रिश्ता एवं पहचान बनता है। और भी खास बात ये है की अगरिया लौह निर्माता है  अगरिया समुदाय पूर्व में वन जंगलो में रह कर अपने जीविका के लिए पत्थर से लोहा बनाता था और जंगल में रहता था ,जिससे उनके पास ना तो जमीन थी और ना ही रहने के लिए स्वयं का कोई घर। धीरे धीरे जैसे जैसे विकास होता गया वैसे वैसे रहने का स्थाई निवास सामाजिक स्तर से किया ,अब अगर ऐसी  स्थिति में हम अगर अगरिया समाज से ५० वर्ष पूर्व का रिकॉर्ड मांगे तो संभव नहीं है , अगरिया समुदाय की जीवन शैली बहुत ही सामान्य है अगरिया समुदाय सतत आज अपनी पहचान की खोज में है  अगरिया लोहासुर देवता की पूजा करते है।
आज   के अगरिया -असुर ,पूर्व असुरो के ही वंशज है तथा वे आज भी अपनी पुरानी परंपरा असुरो के व्यवसाय  को अपना रहे है  अगरियों के द्वारा माने जाने वाले लोहे की भट्ठी का देवता लोहासुर ,कोयले का देवता कोयलासुर तथा अग्नि के देवता अज्ञासुर को भी दिया गया है।  




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दशरथ प्रसाद अगरिया                 
संचालक एवं सचिव 
राष्ट्रिय लौह प्रगलक अगरिया समाज 
महासंघ भारत 

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  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी  1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या-  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।   2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है।  3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे - https://youtu.be/D5RSMaLql1M   )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल  आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है।  4-...

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