आज दिनांक 31/07/2025 को ज़िला अनूपपुर की ओर से फाउंडेशन के संस्थापक श्री दशरथ प्रसाद अगरिया एवं साथी मिलकर ज़िला कलेक्टर ऑफिस मे माननीय राष्ट्रपति महोदया भारत, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग मंत्रालय भारत सरकार, अनुसूचित जनजाति आयोग मध्यप्रदेश, प्रमुख सचिव मध्यप्रदेश शाशन आदिम जाती अनुसन्धान एवं विकास संस्थान मध्यप्रदेश एवं माननीय मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के नाम ज्ञापन सौपे ll ज्ञापन मे फाउंडेशन द्वारा मुख्यतः दो मांगो का उल्लेख किया गया है जिसमे से पहला :- (1)ज्ञापन मे अगरिया जनजाति समाज की मांग अगरिया जनजाति समाज को विशेष पिछड़ी जनजाति (PVTG) मे शामिल किये जाने को लेकर रहा है ll अगरिया जनजाति समाज के लोगो का कहना है अगरिया जनजाति समाज शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी एवं सामाजिक रहन सहन मे बहुत ज्यादा पिछड़ा समाज का इस समाज की स्थिति बहुत ही दयनीय है समाज मे ना तो लोग सरकारी नौकरी मे है, ना ही समाज मे शिक्षा है, ना ही समाज मे अच्छे व्यावसायिक है और ना ही इस समाज का सामाजिक रहन सहन बेहतर है ll मध्यप्रदेश मे आदिवासी समाज को यदि देखा जाए तो आज सभी समाज जिनको PVTG का दर्जा प...
अगरिया जनजाति द्वारा लोहा बनाने की पारंपरिक विधि भारत की आदिम जनजातियों में एक विशेष स्थान रखती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह पारंपरिक और प्रकृति से जुड़ी हुई होती है। नीचे इस प्रक्रिया को चरण बद्ध तरीके से समझने और समझाने का प्रयास कर रहा हु ll
1. लौह अयस्क का संग्रहण (Iron Ore Collection):-
अगरिया जनजाति पहाड़ियों या जंगलों से लौह अयस्क (आमतौर पर हेमेटाइट या मैग्नेटाइट) इकट्ठा करते हैं। अयस्क को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है।
2. भट्ठी (कोठी भट्ठी) का निर्माण:-
मिट्टी और गोबर से बनी एक बेलनाकार भट्ठी तैयार की जाती है।
इसे "कोठी" कहा जाता है और इसकी ऊंचाई करीब 2-3 फीट होती है।
भट्ठी के निचले भाग में हवा प्रवेश के लिए छेद होते हैं।
3. ईंधन की तैयारी:-
लकड़ी या चारकोल (कोयला) का उपयोग किया जाता है।
इसे भट्ठी में आधार ईंधन के रूप में जलाया जाता है।
4. चेपूआ (धौंकनी) द्वारा हवा देना:-
लोहे के गलने हेतु उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
पारंपरिक धौंकनी (चेपूआ), जिसे हाथ या पैर से चलाया जाता है, हवा देकर भट्ठी की आग को और तेज करती है।
5. अयस्क गलाना (Smelting Process):-
कोयले और अयस्क की परतें भट्ठी में डाली जाती हैं।
भट्ठी को लगातार गर्म किया जाता है जब तक लौह अयस्क पिघलकर लोहा (iron bloom) न बन जाए।
6. कच्चे लोहे की निकासी और ढलाई:-
पिघले हुए लोहे को भट्ठी से बाहर निकाला जाता है।
इसे मिट्टी या रेत के साँचे में डालकर आकार दिया जाता है।
7. हथौड़े से कुटाई (Forging):-
निकले हुए कच्चे लोहे को ठंडा होने के बाद गरम करके हथौड़े से पीटा जाता है ताकि उसकी अशुद्धियाँ निकलें और वह मजबूत हो।
8. तैयार उत्पाद:-
तैयार लोहा औजारों, खेती के यंत्रों (हल, फावड़ा, कुल्हाड़ी), या अन्य घरेलू सामान बनाने में उपयोग होता है।
विशेषताएँ:-
यह प्रक्रिया बिना बिजली, गैस या आधुनिक तकनीक के की जाती है।
यह पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति पर आधारित है।
अगरिया जनजाति इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित करती आ रही है।
अगरिया जनजाति की यह परंपरा भारत के सांस्कृतिक और तकनीकी इतिहास का अमूल्य हिस्सा है, जिसे संरक्षित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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