मध्यप्रदेश में अगरिया इतिहास जिला सीधी में agariya history in madhyapradesh district seedhi सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रायगढ़ छ. ग मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम 2025 सम्पन्न हुआ ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे ll

लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के नेतृत्व मे ज़िला रायगढ़ के ग्राम - सराई पाली मे दिनांक - 20/04/2025 को अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ll अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम फाउंडेशन का एक बहुत ही अहम और मुख्य अभियान है जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण भारत मे अगरिया जनजाति समाज को संगठित करना एवं समाज के सम्पूर्ण उत्थान एवं विकास मे फाउंडेशन द्वारा चलाये जा रहे मुहीम से अगरिया जनसमुदाय अवगत कराना है ll  कार्यक्रम का आयोजन  ज़िला इकाई रायगढ़ समिति ज़िलाध्यक्ष श्री उबरन अगरिया जी एवं पूरी ज़िला टीम के सफल प्रयास से संभव हुआ ll  अगरिया जोड़ो अभियान कार्यक्रम सम्पूर्ण भारत मे प्रत्येक वर्ष माह - मार्च एवं अप्रैल मे पूरे भारत मे फाउंडेशन से जुड़े सभी जिलों मे आयोजित किये जाते है ll कार्यक्रम मे फाउंडेशन द्वारा समाज के उत्थान एवं विकास हेतु चलाये गतिविधियों को सम्पूर्ण अगरिया जनसमुदाय तक पहुंचाने हेतु एजेंडा का वाचन जिलों के लिए नियुक्त नोडल द्वारा किया जाता है ll नोडल जिलों जिलों मे जाकर फाउंडेशन द्वारा प्रदाय एजेंडा को विधिवत विश्लेषण करते हुए पढ़...

मध्यप्रदेश में अगरिया इतिहास जिला सीधी में agariya history in madhyapradesh district seedhi

 मध्यप्रदेश में अगरिया इतिहास  जिला  सीधी में :-




मध्यप्रदेश में अगरिया का इतिहास पूर्व काल से ही रहा है अगरिया कई वर्षो से लौह का प्रगलन  करते रहे है। मध्यप्रदेश में अगरिया के लौह प्रगलन के साक्ष्य की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है क्योकि कई महान  वैज्ञानिको ने अपने लेख को शोध के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके है।  मध्यप्रदेश में अगरिया  प्रगलन का इतिहास जिला मंडला से कई जिलों में देखा जा चूका है एवं अगरिया आदिवासी के संस्कृति रीति रिवाज परंपरा को मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण जिलों में रेखांकित किया गया है। 



आज के लेख में हम मध्यप्रदेश के अगरिया आदिवासी  जो मप्र के जिला के जिला सीधी के ग्राम पंचायत जंगल में लौह प्रगलन  करते थे उनकी जानकारी प्रदान करेंगे।  जिला सीधी के ग्राम पंचायत पिपराही में घने जंगलो में अगरिया आदिवासी लौह का प्रगलन करते थेजिसका साक्ष्य  आज भी जंगलो में देखने को मिलता है। जिन स्थानों पर अगरिया आदिवासी द्वारा लोहा गलाया जाता था वहा साक्ष्य स्वारूप आज भी अगरिया आदिवासियों के भट्ठीयो,कोठी ,चेपुआ टूटे हुए आंशिक रूप से मौजूद है जो साक्ष्य स्वरुप बताते है की अगरिया समुदाय यहाँ लौह का वृहद् पैमाने में प्रगलन करते थे।  सीधी जिला के और आगे जंगल में जाने पर लौह अवशेष मिलता है गलाये हुए लौह के टुकड़े , छोटे छोटे रूप में देखने को मिलता है जो आज भी वह मौजूद है।  सीधी जिला के निवासी सुखलाल अगरिया जी जो की ग्राम पिपराही पंचायत से  है उनके द्वारा जानकारी दिया गया की  पूर्व करीब  100  वर्ष पूर्व की बात है पुर्व में राजाओ महराजाओं द्वारा अगरिया आदिवाशियों को लौह प्रगलन  के लिए मना किया जाता था काफी प्रताड़ित किया जाता था जिससे अगरिया आदिवासी छुप कर जंगल में लोहा गलाते थे  और उन्होंने अपने अगरिया आदिवासी की रीति रिवाज परंपरा को नहीं छोड़ा और यह कार्य  करते रहे बताया गया की वही पास से एक नाला गया है जिससे अगरिया आदिवासी पानी लाते थे और लौह गलाने या अन्य कार्य में वही से लाये पानी का उपयोग करते थे। साक्ष्य स्वरुप सीधी के जंगलो में जाने पर वृहद स्तर पर लौह अवशेष ,गलाये पत्थर , अगरिया

                                      सीधी जिला के जंगल में अगरिया भाठी आज भी मौजूद )


 आदिवासियों के भाठी ,कोठी ,चेपुआ के अंश मौजूद है जिसमे अगरिया आदिवासी पत्थर के टुकड़ो ,रेत आदि को डालकर लोहा बनाते थे  जिसका फोटो नीचे मौजूद है।  अतः ये सभी साक्ष्य एवं जानकारियों से प्रमाणित होता है की अगरिया आदिवासी अनादिकाल से लौह का प्रगलन कार्य करते रहे है जो आदिमानव काल की प्रजाति से से है जिनका अस्तित्व आज भी मौजूद है। अगरिया आदिवासी ही एक ऐसा प्रजाति है जिसने सर्वप्रथम लोहे की खोज किया और इस दुनिया को लौह जैसे चमत्कारिक धातु से परिचय कराया।  अतः अगरिया आदिवासियो को आदिमानव काल कि प्रजाति कहना भी गलत नहीं होगा।  जिनका अस्तित्व  सम्पूर्ण भारत  है। अगरिया द्वारा गलाये लोहे में 99.9 %  की शुद्धता पायी जाती हैं जिसका प्रमाण लौह टेस्ट से प्रमाणित किया जा चूका है। अगर आज के परिवेश में अगरिया समुदाय की करते है तो आज भी अगरिया समुदाय ने अपने रीति रिवाज संस्कृति परंपरा को अपनाया हुआ है उसने अपने संस्कृति को नहीं छोड़ा है।




अगरिया आज भी आग पर लोहा का कार्य करता हैं लौह की सामग्री बनाना एवं उससे अपना एवं अपने परिवार का जीवन यापन करना उसका व्यवसाय बना हुआ है।  अगरिया आदिवासियों द्वारा बनाये लौह सामग्री अलग ही चमकदार , और अलग ही आकार की होती है और देखने बड़ा ही सुन्दर और सजीला लगता है।



  अगरिया आदिवासियों को,लोहार सामाजिक रहन सहन के आधार पर  कहा  गया है ,क्योकि अगरिया लोहे का कार्य करता है इसलिए ,लेकिन आज मध्यप्रदेश बल्कि छत्तिश्गढ़ के कई क्षेत्रों में अगरिया को लोहार का नाम दिया गया है जो की न्यायोचित नहीं है।  क्योकि अगरिया का ही दूसरा नाम लोहार है जो सही बात में अगरिया ही है। आज भी बहुत सारे अगरिया जिनको लोहार कहा जाता है अपने अस्तित्व एवं पहचान की खोज में है की उन्हें अगरिया कब समझा जायगा। जो सामाजिक यवावस्था के तहत या अज्ञानता वश या सामाजिक व्यवस्था के तहत लोहार कहा गया है। उक्त जानकारी का साक्ष्य मध्यप्रदेश के सीधी जिला के ग्राम पंचायत पिपराही में सुखलाल अगरिया जी माध्यम से प्राप्त हुआ जो साक्षय स्वरुप देखा जा सकता है। 



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